
रायगढ़। क्या पर्यावरण विनाश की बिनाह पर औद्योगिक विकास जायज है, क्या ग्रामीणों के जल, जंगल और जमीन को औद्योगिक प्रदूषण की चपेट में लेकर जिले का विकास करना जरूरी है, क्या इसके लिए कोई नियम और कायदे नहीं बने हैं, क्या यूं ही जिले की हरियाली को चंद उद्योगपतियों के लाभ की खातिर को बर्बाद किया जाता रहेगा…। औद्योगिक जिला रायगढ़ में अब तक चली आ रही परिपाटी से तो कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है तभी तो एक बार फिर से जिला प्रशासन और पर्यावरण संरक्षण मंडल पूंजीपथरामें मेसर्स प्रिस्मो स्टील्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा ग्रीनफील्ड स्टील प्लांट की स्थापना के जन सुनवाई को लेकर रहस्यमय चुप्पी साधे हुये है और शाम दाम दंड भेद की रणनीति के तहत जनसुनवाई को सफल बनाने के लिए अपनी पूरी उर्जा झोंक रखी है। हैरानी की बात ये है कि खुद को जन हितैषी, वनांचल में रहने वाले ग्रामीणों के रहनुमा और पर्यावरण प्रेमी कहने से नहीं थकने वाले नेता से लेकर जनप्रतिनिधि तक इस मामले में चुप्पी साधे हुये हैं। वर्तमान में प्रदेश में भाजपा का शासनकाल है और रायगढ़ से प्रचंड मतों से विधायक चुने गये विधायक ओपी चौधरी सूबे में पर्यावरण मंत्री हैं बावजूद इसके रायगढ़ जिले में औद्योगिक विस्तार के नाम पर उनके द्वारा विनाशलीला के लिए हरी झंडी दिया जाना समझ से परे है। किसी भी उद्योग के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति हेतु आयोजित होने वाली जनसुनवाई अधिकांश तौर पर पूरी तरह से प्रायोजित ही होती है. आप किसी भी उद्योग बनवाई गई ईआइए रिपोर्ट को देख लें तो यह स्पष्ट तौर पर पता चल जाएगा की यह रिपोर्ट जमीनी हकीकत से कोसों दूर है और इस रिपोर्ट को पर्यावरण किस संरक्षण के लिए नहीं बल्कि औद्योगिक संरक्षण के लिए बनाया गया है. औद्योगीकरण की इस अंधी दौड़ में रायगढ़ जिला प्रदेश में सबसे आगे निकल रहा है. साल 2024 के अंत में 23 दिसंबर 2024 को रायगढ़ के पूंजीपथरा में एक और नए उद्योग के पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए जनसुनवाई का आयोजन किया जा रहा है. लोगों को समस्या औद्योगीकरण से बिल्कुल भी नहीं है, लेकिन एतराज इस बात पर है कि कागज के पन्नों में उद्योगों के लिए पर्यावरण संरक्षण से सम्बंधित नियम कानूनों का भी पालन नहीं किया जा रहा है. यदि पालन हो रहा होता तो रायगढ़ (त्ंपहंती)की हवा जहरीली क्यों है? क्या यह समझ लिया जाए की एक और उद्योग की संख्या बढ़ने से रायगढ़ की जहरीली हवा मे अमृत घुल जाएगा, यदि ऐसा नहीं है तो किसी अन्य उद्योग के स्थापना की भी रायगढ़ जिले में कोई जरूरत नहीं है.
प्रभावितों में खासा आक्रोश

तुमीडीह, पूंजीपथरा में मेसर्स प्रिस्मो स्टील्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा ग्रीनफील्ड स्टील प्लांट की स्थापना को लेकर नाराजगी दिख रही है। परियोजना के लिए छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल और प्रशासन द्वारा 23 दिसंबर 2024 को जनसुनवाई निर्धारित की गई है। हालांकि, स्थानीय रहवासियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस प्रस्ताव का विरोध करने की बात कही है। उनका आरोप है कि इस परियोजना से क्षेत्र में पहले से विकराल प्रदूषण की समस्या और गंभीर हो जाएगी।
पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंताएं
पर्यावरण प्रेमियों और ग्रामीणों का कहना है कि यह स्टील प्लांट जल, जंगल, जमीन और वन्यजीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। क्षेत्र पहले ही औद्योगिक प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है, और यह परियोजना समस्या को और बढ़ाएगी।
वायु और जल प्रदूषण
प्लांट से उत्सर्जित धुआं और कचरा हवा और जल स्रोतों को प्रदूषित करेगा।जलाशयों पर भारी दबाव पड़ेगा, जिससे स्थानीय जल संकट गहरा सकता है। परियोजना स्थल के पास के वन क्षेत्र वन्य प्राणियों का प्राकृतिक आवास हैं। प्रदूषण और शोर से उनके जीवन पर संकट बढ़ेगा। हवा और पानी की गुणवत्ता में गिरावट के कारण स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
क्या है प्रस्तावित परियोजना
मेसर्स प्रिस्मो स्टील्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा प्रस्तावित ग्रीनफील्ड स्टील प्लांट में विभिन्न औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की योजना है। जिनमें डीआरआई किल्न्सरू 3,63,000 टीपीए क्षमता। इंडक्शन फर्नेसरू 2,64,000 टीपीए, रोलिंग मिल्स, कोल वाशरी यूनिट, पावर प्लांट 50 मेगावाट, ईंट निर्माण इकाई की स्थापना किया जाएगा।
जनसुनवाई और ग्रामीणों का विरोध
परियोजना के लिए जनसुनवाई 23 दिसंबर 2024 को परियोजना स्थल पर सुबह 11 बजे होगी। हालांकि, ग्रामीणों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने विरोध जताते हुए कहा है कि उनकी चिंताओं को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन उनकी समस्याओं को अनदेखा कर केवल औद्योगिक विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। रायगढ़ में ग्रीनफील्ड स्टील प्लांट की स्थापना को लेकर चल रही खींचतान विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संघर्ष का प्रतीक बन गई है। प्रशासन पर दोहरी जिम्मेदारी हैकृऔद्योगिक विकास को बढ़ावा देना और पर्यावरण और जनता के हितों की रक्षा करना। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि 23 दिसंबर को होने वाली लोक सुनवाई में ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों की चिंताओं को कितनी गंभीरता से लिया जाता है।