रायगढ़। जल संरक्षण के लिए जलाशयों को बचाने के लिए शासन-प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। सार्वजनिक उपयोग की जमीन पर अवैध कब्जे के मामले जिस गति से बढ़ रहे है, उससे तालाबों के अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। शहर में अब गिनती के ही तालाब बचे हुए हैं मगर उन पर भी भूमाफियाओं की गिद्ध निगाहें जमी हुई है। हैरत की बात तो ये है कि जिन उद्योगों की जिम्मेदारी पर्यावरण संरक्षण और जल संरक्षण को बढ़ावा देना है, वे ही अब तालाबों का अस्तित्व मिटाने पर तूल गये हैं।
जी हां…, हम यहां बात कर रहे हैं पहाड़ मंदिर के पीछे इस तालाब की… हालांकि इस तालाब का निर्माण मेसर्स एमएसपी कंपनी ने कराया था मगर अब वही कंपनी इस तालाब को पाटने का काम कर रही है और प्रशासन आंखें मंूदे हुए है। बताया जा रहा है कि तालाब को पाटकर यहां कुछ नये प्रोजेक्ट पर काम शुरू करने की तैयारी चल रही है जिसके लिए इस तालाब की बलि चढ़ाई जा रही है। हालांकि उद्योग प्रबंधन का कहना है कि यह उनकी निजी जमीन है और तालाब भी उन्होंने ही खुदवाया था और अब वे ही इसे पाट रहे हैं तो इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है, मगर यहां सवाल यह उठता है कि उद्योगों की स्थापना में जल जंगल और जमीन को तहस नहस करने वाले इन उद्योपपतियों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती जल संरक्षण की दिशा में काम करने की। वर्तमान में रायगढ़ जिले की जो हालत है और गर्मियों में जिस तरह से भूमिगत जल पाताल तक पहुंच रहा है, इसके लिए जिले के उद्योग ही ज्यादातर जिम्मेदार हैं और अब जब इस स्थिति से उबरने के लिए जल संरक्षण को बढ़ावा देने की जरूरत है और इसमें सामूहिक सहभागिता की जरूरत है तो जिले के जलस्त्रोतों का सबसे ज्यादा अंधाधुंध दोहन करने वाले ऐसे उद्योगपति ही बजाये जल संरक्षण की दिशा में कदम उठाने, उसे पाटने में आमादा हो रहे हैं। यहां यह बताना भी जरूरी होगा कि तालाबों के संरक्षण को लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी महत्वपूर्ण आदेश दिये हैं जिसमें कोर्ट ने कहा है कि जंगल, तालाब, पोखर, पठार तथा पहाड आदि को समाज के लिए बहुमूल्य मानते हुए इनके अनुरक्षण को पर्यावरणीय संतुलन के लिए जरूरी बताया है। निर्देश है कि तालाबों को ध्यान देकर तालाब के रूप में ही बनाये रखना चाहिए। उनका विकास एवम् सुन्दरीकरण किया जाना चाहिए, जिससे जनता उसका उपयोग कर सके। आदेश है कि तालाबों के समतलीकरण के परिणामस्वरूप किए गए आवासीय पट्टों को निरस्त किए जाए।
तो क्या ऐसे मामलों में जिला प्रशासन को भी इस मामले में स्वतः ही संज्ञान लेने की जरूरत नहीं है ताकि जिला प्रशासन द्वारा जल संरक्षण को लेकर चलाये जा रहे विशेष मुहिम को भी बल मिले और सभी को यह संदेश भी जाये कि जल संरक्षण जिले के लिए कितना महत्वपूर्ण है। कहने का मतलब ये कि यदि आप किसी चीज को बना नहीं सकते तो कम से कम उसे मिटाओ तो मत….।
पहाड़ मंदिर के पीछे तालाब की चढ़ाई जा रही बलि, प्रशासन के जल संरक्षण की मुहिम की एमएसपी प्लांट प्रबंधन उड़ा रहा धज्जी
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